बाकायदा तह कर के रखे गए तिरंगों के लिए लहराने का दिन है आज|
साल भर बक्से की सीलन के बाद ताज़ा हवा खाने के बहाने ये २-३ दिन बड़े अच्छे बनाये गए हैं|
एक स्कूली बच्चों का समूह लौट रहा था कहीं से कार्यक्रम करके, उनके मास्साब ने सब बच्चों से तिरंगे इकट्ठे किये और सबको चाय नाश्ता कराया और अंत में जब उठे तो उन तिरंगो को वहाँ ऐसे रखा छोड़ दिया जैसे संसद में बैठने वाले लोग लोकतंत्र की आत्मा को संसद के प्रवेश द्वार पर छोड़ देते हैं|
खैर ये सब वाजिब है, होता रहता है, उपयोग के बाद वस्तुएं मूल्यरहित समझ ली जाती हैं वे कितनी ही अमूल्य क्यों ना हो|
लेकिन फिर जो हुआ उसने मेरी बेजान तिरंगे में आस्था को जां दे दी|
एक बच्चा आया उसकी उम्र देशभक्ति या तिरंगे का अर्थ भले ना समझे मगर उसने उन्हें बाकायदा समेट कर भली प्रकार तह कर के रख लिया|
जैसे ही मुड़ा मेरी साइकिल से टकरा गया बहाने से मैंने पूछा इनका क्या करोगे ?
उसने मुझे यों देखा जैसे इतना बड़ा बेवकूफ उसने जिंदगी में पहली बार देखा हो|
बोला करना क्या है इन सब का रेट दू से दस्स रुपैय्या तक है| आज शाम तक सब बिक जायेंगे|
बड़े सुकून से मैंने अपनी साइकिल पर उसका एक तिरंगा लगाया , पांच का एक सिक्का थमाया, और इस बात को महसूस किया कि तिरंगा फहराने वाले , नेता, तिरंगा फहराने का आदेश देने वाले संविधान और तमाम सारी बिखरी संवैधानिकता ने भले अपनी मौजूदगी में तमाम मुल्क को भूखा रखा है ,
मगर बेजान तिरंगा एक भूखे बच्चे को रोटी खिला सकता है|
वाकई जां इसी से है, इसी में है..............
साल भर बक्से की सीलन के बाद ताज़ा हवा खाने के बहाने ये २-३ दिन बड़े अच्छे बनाये गए हैं|
एक स्कूली बच्चों का समूह लौट रहा था कहीं से कार्यक्रम करके, उनके मास्साब ने सब बच्चों से तिरंगे इकट्ठे किये और सबको चाय नाश्ता कराया और अंत में जब उठे तो उन तिरंगो को वहाँ ऐसे रखा छोड़ दिया जैसे संसद में बैठने वाले लोग लोकतंत्र की आत्मा को संसद के प्रवेश द्वार पर छोड़ देते हैं|
खैर ये सब वाजिब है, होता रहता है, उपयोग के बाद वस्तुएं मूल्यरहित समझ ली जाती हैं वे कितनी ही अमूल्य क्यों ना हो|
लेकिन फिर जो हुआ उसने मेरी बेजान तिरंगे में आस्था को जां दे दी|
एक बच्चा आया उसकी उम्र देशभक्ति या तिरंगे का अर्थ भले ना समझे मगर उसने उन्हें बाकायदा समेट कर भली प्रकार तह कर के रख लिया|
जैसे ही मुड़ा मेरी साइकिल से टकरा गया बहाने से मैंने पूछा इनका क्या करोगे ?
उसने मुझे यों देखा जैसे इतना बड़ा बेवकूफ उसने जिंदगी में पहली बार देखा हो|
बोला करना क्या है इन सब का रेट दू से दस्स रुपैय्या तक है| आज शाम तक सब बिक जायेंगे|
बड़े सुकून से मैंने अपनी साइकिल पर उसका एक तिरंगा लगाया , पांच का एक सिक्का थमाया, और इस बात को महसूस किया कि तिरंगा फहराने वाले , नेता, तिरंगा फहराने का आदेश देने वाले संविधान और तमाम सारी बिखरी संवैधानिकता ने भले अपनी मौजूदगी में तमाम मुल्क को भूखा रखा है ,
मगर बेजान तिरंगा एक भूखे बच्चे को रोटी खिला सकता है|
वाकई जां इसी से है, इसी में है..............
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