Thursday, 12 January 2012

12th Jan 2012


१२ जनवरी , वैसे तो कोई खास नही ये उतना ही सामान्य दिन है जितना कि १ के बाद २ का आना ,
पर साथ इसके कि आज के दिन स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था....

आज दिन कुछ ज्यादा ही अच्छा बीता सुबह से ना जाने क्यों बड़ा उत्साह सा महसूस हो रहा था...
शाम तक इक संगोष्ठी या परिचर्चा कह लीजिए , जिसमे भाग लेने का मौका मिला.
परिचर्चा विवेकानंद के ऊपर ही थी, जैसा कि सब जानते है कि वो १०-१२ जन आगे बैठकर और ४०-५० लोग सामने बैठकर ऐसा कार्यक्रम मानते हैं,. सब आकर प्रशंसा में दो चार शब्द कहते हैं , कुछ लोग भारत की अब तक की तरक्की का जिम्मेदार तक बता देते हैं, उसे, जिसका कि उस दिन जन्मदिन होता है,
यही सब तो आज भी हुआ लेकिन अब लोग थोडा अलग दिखना चाहते हैं,एक बुद्धिजीवी इसी दृष्टि से आये थे, उन्होंने ऐसे कार्यक्रम को निरा बकवास बताया, बोले,
विवेकानंद ने कुछ खास तो नही किया हम सब इक आदमी के नाम का ढोल पीटकर बैठ गए हैं| उसे आता ही क्या था, उस टाइम कोई अक्लमंद पैदा ही नही हुआ जो उसकी बातों को काट सकता|
इन बुद्धिजीवी महोदय ने विवेकानंद का भयानक चरित्र-चित्रण इस प्रकार से किया मानो, कार्ल मार्क्स आज भी भौतिकतावाद पर उनका अवैतनिक सलाहकार हो|
आगे भी कहा कि विवेकानंद को खुद कुछ आता जाता ही कहाँ था कि वे तो रामकृष्ण की बोई फसल काट रहें थे|!!!!!!!!!!!!!!!!!

वाकई इतने महान, प्रयोगवादी और निर्भीक बुद्धिजीवी अब हर गली में पैदा होने लगे हैं, प्रो.नामवर सिंह, राजेन्द्र यादव, अरुंधति राय....... इन सब से प्रेरित होकर ये नयी प्रजाति विकसित – फलफूल रही है|(परिभाषा:बुद्धिजीवी=परम असहमति) ये एक ऐसा रोग है जो किसी भी बात पर ठीक उल्टा कहने करने या कम से कम बताने को प्रेरित करता है|
मेरे आस पास कम से कम ३ तो ऐसे लोग हैं ही, उनकी चर्चा फिर कभी.....
आज केवल विवेकानंद पर बात करूँगा..
विवेकानंद से परेशान लोगो आपकी आत्मा को शांति मिले(सर्वप्रथम),
अब , बरसों पहले एक ऐसा शख्स उभर कर आया था जिसने विश्व मंच पर उपस्थित तमाम बुद्धिजीवियों , धर्माधिकारियों, आस्तिकों नास्तिकों की बेवजह की बहस को शांत कर दिया था, इस शख्स की विशेषता कहें या पराक्रम कि जब इन्हें वाणी मिली तो दूसरे खुद की जीभ काट बैठे|
आज जिन बुद्धिजीवियों को उनसे तमाम असहमति है, मैं शर्त लगाकर कह सकता हूँ कि विवेकानंद के साक्षात्कार के ५मिनट के भीतर वे लघुशंका का बहाना ढूँढ लेंगे| एक आदमी इतना समर्थ तो था कि उसकी बात को तुम्हारे जैसे ५००० बुद्धिजीवी भी उसके सामने कभी नही काट पाए और उसका सामने बोलने की हिम्मत नही रख पाए, और आज आप खुद को देख लीजिए, चार कुत्ते भी मुफ्त में आपकी बात नही सुनेंगे बीच में ही कुतिया की बात शुरू हो जायेगी....
ना जाने क्यों हम सस्ती लोकप्रियता के पीछे भागते हैं|
अरे कब समझोगे मित्र कि किसी सही व्यक्ति की आलोचना से तुम चर्चा में आ सकते हो, लेकिन तुम्हारे विचार सदैव तुम्हारे खुद के प्रति ही विश्वासघाती रहेंगे| 

काश कि हम मौलिकता के साथ जिंदगी के नए तराने ढूँढ़ते रहें, ना कि किसी और की रौशनी में खुद को जलाकर खाक हो जाएँ|

इक आखिरी बात और, क्रांति ,समता , जनवाद, प्रयोगवाद , नया दृष्टिकोण ना जाने क्यों कि अब इन शब्दों से मुझे व्यक्तिगत रूप से बदहजमी हो गयी है....

 विवेकानंद जयंती पर तमाम जनों को, जो ज्ञानयोग राजयोग प्रेमयोग इत्यादि से स्वयम को सिंचित कर प्रसन्न हुये हों, हार्दिक शुभकामनाएं....

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