दहेज़::::: लड़कियों का भी फैशन है भाऊ, कल को पड़ोसन से कॉम्पटीशन में काम आएगा. हाँ भैया पढ़ी लिखी लड़कियां.... वो भी चाहती हैं की बाप का माल खाली भाई भौजाई क्यों उड़ायें?
शादी से पहले बाप को खाली किया जाए या बाद में, माँ तो खैर कंधे पर सर रख कर रोने के लिए है, बाकी बस साथ में सारी मनचाही चीजें चलीं जाएँ एक गाडी में भर कर,
उसके बाद की रस्मोरवायत गैर जरूरी तौर पर किसी के पैदा होने पर आने की रहती है या जरूरी तौर पर किसी की तेरहवीं में आने की.
लड़कों का तो और भी अच्छा हिसाब किताब है, हाँ मेरे बाप, पढ़े लिखे लौंडे ही, अरे ऊ का है ना की कायदे से बाउजी बड़ी की शादी में बहुत खर्चा किये थे, बडकी चूस के ले गयी तो अब रेकवरी तो करना है ना... है की नहीं, या छुटकी के लिए भी बना के रखना है वगैरह वगैरह.
कुल मिलाकर, शादी से पहले गाडी और गाडी के पीछे बैठने वाली पर लड़के और ब्यूटी पार्लर या डिस्को में लड़कियां, जितना उड़ाती हैं, उसका श्राद्ध जाकर विवाह नाम की परम्परा पर होता है. जहाँ दो लोग एक दिन के बाद हर रात साथ सो सकते हैं (ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात पहले है, हालाकि सोता तो कौन है, इतने बरस जोबन कैसे संभालो हमने) , और एक दूसरे के भले बुरे पर गरिया सकते हैं, बोझ बन सकते हैं. इन सब वाहियात कामों के वेलिडेशन का दिन शादी होता है.
वरना लाके देखिये अपने घर में कोई लड़की ! बाऊ तुरंत करैक्टर पर जालिम लोशन छिड़क मारते हैं, और वही ब्याह के लड़की लाइए, कोई तकलीफ नहीं, सब जानते हैं पहला उद्देश्य वही है जो महत्त्वपूर्ण बताया गया है.
सो कुल मिलाकर, इन सब कामों के बाद कई बार बाप की भूमिका शादी में उतनी ही दिखाई देती है जितनी वेश्यालय में अरेंजर की. बार बार पूछना पड़ता है ग्राहक से, साथ वालों से, कोई तकलीफ तो नहीं. अब अगर कोई तकलीफ हुई है तो परेशां ना हों, जिन्दगी भर दूसरों पर आपकी ठसक का एक इंतजाम हमारी बिटिया अपने साथ ढेर सारे दहेज़ के रूप में लेकर जा रही है. कुछ बाकी रहे तो बिचवानी नाम के दलाल के हाथों बताय दीजियेगा. वेश्यालय फिर भी बेहतर जगह है कम से कम पैसा ग्राहक तो देता है बाकी धंधा भी साफ़ दिखाई देता है. शादी एक लड़की की होती है, बाराती कम से कम चार छः मुर्गियां हलाल कर डालते हैं. कई बार मुर्गे भी हूर की परियों के हाथों हलाल हो जाते हैं. कुल मिलाकर एक शादी बहुत ही ख़राब और उलटी गंगा टाइप बिना उसूल की बिकवाली लिवाली प्रक्रिया है .
सारे बजरिये माहौल से दूर आप सोचेंगे की माँ बहुत भोली रहती है कि हाय उसके जिगर का टूक दूर हो रहा है. ना जाने कहाँ मिलेगा. पर ऐसा नहीं हो रहा होता है, माँ भी आपके नाना को दो महिना उपवास कराकर आई थी.... एक गाडी भरके, मेक-अप करके. जिन्दगी भर पार्लर में जाने भर की ठसक का जुगाड़ करके........
सो अपने अपने दहेज़ की औलादों, अगली बार अगर आई लव यू माय डैड लिख के एक ठो फोटू शेयर मारो तो पहिले अपने मरदाना या जनाना पर्स में से वो पैसा निकाल के बाप के पर्स में रख देना जो पीने, घूमने, गाडी में तेल भराने, मेक-अप कराने, एबॉर्शन कराने या उससे पहले के क्रियाकलापों में खर्च करना हो . (हिदायत या नेक सलाह नहीं, गुरूर को ललकार है.)
कसम खुदा की बहुत चैन मिलेगा बाप को , जिसे इंतजाम तो करना ही है दहेज़ का, या तो तुम्हारे लिए गर उसकी बेटी हो, या तुम्हारी छोटी बहन के लिए, जिसके तुम भाई हो........
शादी से पहले बाप को खाली किया जाए या बाद में, माँ तो खैर कंधे पर सर रख कर रोने के लिए है, बाकी बस साथ में सारी मनचाही चीजें चलीं जाएँ एक गाडी में भर कर,
उसके बाद की रस्मोरवायत गैर जरूरी तौर पर किसी के पैदा होने पर आने की रहती है या जरूरी तौर पर किसी की तेरहवीं में आने की.
लड़कों का तो और भी अच्छा हिसाब किताब है, हाँ मेरे बाप, पढ़े लिखे लौंडे ही, अरे ऊ का है ना की कायदे से बाउजी बड़ी की शादी में बहुत खर्चा किये थे, बडकी चूस के ले गयी तो अब रेकवरी तो करना है ना... है की नहीं, या छुटकी के लिए भी बना के रखना है वगैरह वगैरह.
कुल मिलाकर, शादी से पहले गाडी और गाडी के पीछे बैठने वाली पर लड़के और ब्यूटी पार्लर या डिस्को में लड़कियां, जितना उड़ाती हैं, उसका श्राद्ध जाकर विवाह नाम की परम्परा पर होता है. जहाँ दो लोग एक दिन के बाद हर रात साथ सो सकते हैं (ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात पहले है, हालाकि सोता तो कौन है, इतने बरस जोबन कैसे संभालो हमने) , और एक दूसरे के भले बुरे पर गरिया सकते हैं, बोझ बन सकते हैं. इन सब वाहियात कामों के वेलिडेशन का दिन शादी होता है.
वरना लाके देखिये अपने घर में कोई लड़की ! बाऊ तुरंत करैक्टर पर जालिम लोशन छिड़क मारते हैं, और वही ब्याह के लड़की लाइए, कोई तकलीफ नहीं, सब जानते हैं पहला उद्देश्य वही है जो महत्त्वपूर्ण बताया गया है.
सो कुल मिलाकर, इन सब कामों के बाद कई बार बाप की भूमिका शादी में उतनी ही दिखाई देती है जितनी वेश्यालय में अरेंजर की. बार बार पूछना पड़ता है ग्राहक से, साथ वालों से, कोई तकलीफ तो नहीं. अब अगर कोई तकलीफ हुई है तो परेशां ना हों, जिन्दगी भर दूसरों पर आपकी ठसक का एक इंतजाम हमारी बिटिया अपने साथ ढेर सारे दहेज़ के रूप में लेकर जा रही है. कुछ बाकी रहे तो बिचवानी नाम के दलाल के हाथों बताय दीजियेगा. वेश्यालय फिर भी बेहतर जगह है कम से कम पैसा ग्राहक तो देता है बाकी धंधा भी साफ़ दिखाई देता है. शादी एक लड़की की होती है, बाराती कम से कम चार छः मुर्गियां हलाल कर डालते हैं. कई बार मुर्गे भी हूर की परियों के हाथों हलाल हो जाते हैं. कुल मिलाकर एक शादी बहुत ही ख़राब और उलटी गंगा टाइप बिना उसूल की बिकवाली लिवाली प्रक्रिया है .
सारे बजरिये माहौल से दूर आप सोचेंगे की माँ बहुत भोली रहती है कि हाय उसके जिगर का टूक दूर हो रहा है. ना जाने कहाँ मिलेगा. पर ऐसा नहीं हो रहा होता है, माँ भी आपके नाना को दो महिना उपवास कराकर आई थी.... एक गाडी भरके, मेक-अप करके. जिन्दगी भर पार्लर में जाने भर की ठसक का जुगाड़ करके........
सो अपने अपने दहेज़ की औलादों, अगली बार अगर आई लव यू माय डैड लिख के एक ठो फोटू शेयर मारो तो पहिले अपने मरदाना या जनाना पर्स में से वो पैसा निकाल के बाप के पर्स में रख देना जो पीने, घूमने, गाडी में तेल भराने, मेक-अप कराने, एबॉर्शन कराने या उससे पहले के क्रियाकलापों में खर्च करना हो . (हिदायत या नेक सलाह नहीं, गुरूर को ललकार है.)
कसम खुदा की बहुत चैन मिलेगा बाप को , जिसे इंतजाम तो करना ही है दहेज़ का, या तो तुम्हारे लिए गर उसकी बेटी हो, या तुम्हारी छोटी बहन के लिए, जिसके तुम भाई हो........
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