अग्नि मेरी आत्मा
है, शीत मेरा शौर्य सा,
मैं धरा पर सूर्य सा सज्जित अखंड विराट हूँ,
जो कोई समझे मुझे मैं याचक लगूं तो भूल है
मैं विधाता की विधा का स्वयंवर सम्राट हूँ,
मृत्यु है मेरी जिह्वा पर नृत्य करती रसभरी,
तथा जीवन के रसों का प्रबल शक्ति प्रपात हूँ,
मत मुझे दुर्बल समझना मैं भले विजयी नही,
पर पराजय डरे मुझसे क्योंकि मैं प्रभात हूँ......
मैं धरा पर सूर्य सा सज्जित अखंड विराट हूँ,
जो कोई समझे मुझे मैं याचक लगूं तो भूल है
मैं विधाता की विधा का स्वयंवर सम्राट हूँ,
मृत्यु है मेरी जिह्वा पर नृत्य करती रसभरी,
तथा जीवन के रसों का प्रबल शक्ति प्रपात हूँ,
मत मुझे दुर्बल समझना मैं भले विजयी नही,
पर पराजय डरे मुझसे क्योंकि मैं प्रभात हूँ......
इसे लम्बा करो! अच्छी कविताओं को कुछ उम्र और मिलनी चाहिए (y) बाकी शानदार तो है ही :)
ReplyDeleteसांझ के अघट आचरण का विस्तार तु विकराल कोई सोपान
अमृत आने की दस्तक है, तू प्रतीक्षित विषपात है
:) :)