Monday, 1 September 2014

इसक

इसक ...
तन वाला
मन वाला
वो तो सबका होता है,
तुमसे जो मिला
वो पथरीला इसक
जहाँ तुम बैठ कर
एक दो मिनट
मेरे साथ चली गयी.
मैंने उस पत्थर को
छू कर पा लिया तुम्हे,
अपना पथरीला इसक

औरों के लिए जीना और मरना इसक,
पर तुमसे जो मेरा,
वो सांस लेना इसक,
ठहरना इसक , फिर से चलना इसक
अपना महकता इसक.

लेने और देने वाला ,
वो तो सबका होता है,
तुमसे जो मेरा,
वो खोना इसक
फिर से पाना इसक,
तेरे बिन है हर तराना इसक.

सबका जो होता है भरोसा इसक,
इसक कोई शर्त, इसक कोई बंदिश,
पर तुमसे जो मेरा,
हर इजाजत इसक, हर इबादत इसक,
अपनी आदत इसक......

Saturday, 5 July 2014

मैं तुम्हारे पास आ गया हूँ.....

फिर जो महकने लगें अंगना तुम्हारे फूल, 
फिर जो अंगडाई ले उठें तुम्हारे बिस्तरों की सलवटें, 
फिर जो पर्दों को बेशरमी से उड़ाने लगे हवा, 
फिर जो मिलने लगे तुम्हारी तन्हाई को दवा, 
फिर जो खनकने लगें तुम्हारे कंगन बिना जाने, 
फिर जो लब सूखने लगें तेरा कहा माने, 
फिर जो बारिश सी महसूस हो पलकों में, 
फिर जो तपन सी महसूस हो गालों पर... 
फिर से पांवों पर महसूस हों थपकियाँ, 
फिर से जो दर्द की दवा बनें हिचकियाँ, 
फिर से जो भींगने को दिल प्यासा हो आये, 
फिर से जो सीने में कोई धड़कन सुना जाए... 
फिर से तुम्हारे गेसुओं में फंस जाएँ कोई अंगुलियाँ, 
फिर से तुम्हारी हथेली को मिलें प्यार भरी नर्मियां... 
समझ लेना बादल सा आवारा छा गया हूँ, 
मैं फिर से तुम्हारे पास आ गया हूँ....

Friday, 9 May 2014

मेरे जैसे !!!



बेसहारा लोग,

मेरे जैसे,

ढूंढते फिरते हैं,

एक कन्धा,

या एक हथेली,

इसलिए,

कि रिश्ते अधूरे न रहें,

कम न पड़ें,

कि जीने की कोई वजह ना मिले,

मेरे जैसे,

ढूंढते फिरते हैं,

एक साथ,

एक राह,

कि कोई चलने को राजी भर हो,

बाकी, उसके कदम हम खुद हो जायेंगे,

मेरे जैसे,

ढूढ़ते फिरते हैं,

एक दिया,

बिना तेल ही,

राजी हो जलने को,

हवा के हर झोंके में,

तेल हम खुद हो जायेंगे,

मेरे जैसे,

ढूंढते हैं,

एक नाव छोटी सी,

जो राजी हो खेलने को,

किसी शाम लहरों पर,

नदी हम खुद हो जायेंगे,

मेरे जैसे,

ढूंढते हैं,

खिड़कियाँ,

जो ऊंचाई पर हों इतनी कि,

ठंडी हवा आ जाये,

सहला जाए,

कोई और ना देखे,

परदे हम खुद हो जायेंगे,

मेरे जैसे,

ढूंढते हैं,

काजल,

तुम्हारी आँखों में,

बस बस कोर के ठीक नीचे,

हाँ हाँ थोडा सा फैला हुआ,

बाहरी किनारों पर,

खतरे पर, आंसू पर,

पोंछ हम खुद जायेंगे,

मेरे जैसे,

तुम्हारी जिन्दगी की रफ कॉपी के पन्ने,

तुम लिखो, अच्छा लिखो,

सुन्दर नए कागजों पर,

अपनी इबारतें,

कूड़े में हम खुद जायेंगे,

मेरे जैसे,

होते है तीन लकड़ियाँ नहीं,

चार कंधे नहीं,

दो डलिया मिटटी नहीं,

गिरजे की मोमबत्ती नहीं,

पर वो सब जो तुम्हे सुकून दे सके,

अपने आखिरी करम तक,

तुम्हारे आखिरी रहम तक,

ऑक्सीजन की तरह,

बस जरूरत बनी रहे,

मयखाने की तरह,

बस प्यास बनी रहे,

हम तुम्हारी जरूरत और प्यास,

बनकर इतरा तो सकते हैं,

एक रोज,

छलक हम खुद जायेंगे,

बिखर हम खुद जायेंगे,

मेरे जैसे....

Sunday, 2 March 2014

दहेज़ सामाजिक प्रक्रिया है मेरे यार !

दहेज़::::: लड़कियों का भी फैशन है भाऊ, कल को पड़ोसन से कॉम्पटीशन में काम आएगा. हाँ भैया पढ़ी लिखी लड़कियां.... वो भी चाहती हैं की बाप का माल खाली भाई भौजाई क्यों उड़ायें?

शादी से पहले बाप को खाली किया जाए या बाद में, माँ तो खैर कंधे पर सर रख कर रोने के लिए है, बाकी बस साथ में सारी मनचाही चीजें चलीं जाएँ एक गाडी में भर कर,
 उसके बाद की रस्मोरवायत गैर जरूरी तौर पर किसी के पैदा होने पर आने की रहती है या जरूरी तौर पर किसी की तेरहवीं में आने की.

लड़कों का तो और भी अच्छा हिसाब किताब है, हाँ मेरे बाप, पढ़े लिखे लौंडे ही, अरे ऊ का है ना की कायदे से बाउजी बड़ी की शादी में बहुत खर्चा किये थे, बडकी चूस के ले गयी तो अब रेकवरी तो करना है ना... है की नहीं, या छुटकी के लिए भी बना के रखना है वगैरह वगैरह.

कुल मिलाकर, शादी से पहले गाडी और गाडी के पीछे बैठने वाली पर लड़के और ब्यूटी पार्लर या डिस्को में लड़कियां, जितना उड़ाती हैं, उसका श्राद्ध जाकर विवाह नाम की परम्परा पर होता है. जहाँ दो लोग एक दिन के बाद हर रात साथ सो सकते हैं (ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात पहले है, हालाकि सोता तो कौन है, इतने बरस जोबन कैसे संभालो हमने) , और एक दूसरे के भले बुरे पर गरिया सकते हैं, बोझ बन सकते हैं. इन सब वाहियात कामों के वेलिडेशन का दिन शादी होता है.
वरना लाके देखिये अपने घर में कोई लड़की ! बाऊ तुरंत करैक्टर पर जालिम लोशन छिड़क मारते हैं, और वही ब्याह के लड़की लाइए, कोई तकलीफ नहीं, सब जानते हैं पहला उद्देश्य वही है जो महत्त्वपूर्ण बताया गया है.

सो कुल मिलाकर, इन सब कामों के बाद कई बार बाप की भूमिका शादी में उतनी ही दिखाई देती है जितनी वेश्यालय में अरेंजर की. बार बार पूछना पड़ता है ग्राहक से, साथ वालों से, कोई तकलीफ तो नहीं. अब अगर कोई तकलीफ हुई है तो परेशां ना हों, जिन्दगी भर दूसरों पर आपकी ठसक का एक इंतजाम हमारी बिटिया अपने साथ ढेर सारे दहेज़ के रूप में लेकर जा रही है. कुछ बाकी रहे तो बिचवानी नाम के दलाल के हाथों बताय दीजियेगा.   वेश्यालय फिर भी बेहतर जगह है कम से कम पैसा ग्राहक तो देता है बाकी धंधा भी साफ़ दिखाई देता है. शादी एक लड़की की होती है, बाराती कम से कम चार छः मुर्गियां हलाल कर डालते हैं. कई बार मुर्गे भी हूर की परियों के हाथों हलाल हो जाते हैं. कुल मिलाकर एक शादी बहुत ही ख़राब और उलटी गंगा टाइप बिना उसूल की बिकवाली लिवाली प्रक्रिया है .

सारे बजरिये माहौल से दूर आप सोचेंगे की माँ बहुत भोली रहती है कि हाय उसके जिगर का टूक दूर हो रहा है. ना जाने कहाँ मिलेगा. पर ऐसा नहीं हो रहा होता है, माँ भी आपके नाना को दो महिना उपवास कराकर आई थी.... एक गाडी भरके, मेक-अप करके. जिन्दगी भर पार्लर में जाने भर की ठसक का जुगाड़ करके........

सो अपने अपने दहेज़ की औलादों, अगली बार अगर आई लव यू माय डैड लिख के एक ठो फोटू शेयर मारो तो पहिले अपने मरदाना या जनाना पर्स में से वो पैसा निकाल के बाप के पर्स में रख देना जो पीने, घूमने, गाडी में तेल भराने, मेक-अप कराने, एबॉर्शन कराने या उससे पहले के क्रियाकलापों में खर्च करना हो . (हिदायत या नेक सलाह नहीं, गुरूर को ललकार है.)
कसम खुदा की बहुत चैन मिलेगा बाप को , जिसे इंतजाम तो करना ही है दहेज़ का, या तो तुम्हारे लिए गर उसकी बेटी हो, या तुम्हारी छोटी बहन के लिए, जिसके तुम भाई हो........

Thursday, 2 January 2014

Kyon ki Main Prabhat Hun. क्योंकि मैं प्रभात हूँ.



अग्नि मेरी आत्मा है, शीत मेरा शौर्य सा,

मैं धरा पर सूर्य सा सज्जित अखंड विराट हूँ,

जो कोई समझे मुझे मैं याचक लगूं तो भूल है

मैं विधाता की विधा का स्वयंवर सम्राट हूँ,

मृत्यु है मेरी जिह्वा पर नृत्य करती रसभरी,

तथा जीवन के रसों का प्रबल शक्ति प्रपात हूँ,

मत मुझे दुर्बल समझना मैं भले विजयी नही,

पर पराजय डरे मुझसे क्योंकि मैं प्रभात हूँ......

संभावनाएं



वो अकेला ही देखा जाता था हमेशा और बरगद से ठीक पहले पड़ा एक बड़ा सा पाइप उसका ठिकाना था. न किसी और को उसकी फ़िक्र थी न उसे किसी को अपने बारे में बताने की चाहत, सो मोहल्ले भर का कर्फ्यू केवल उसके नाम पर लगता था.
सुना जाता है कि एक रात एक लड़की बारिश में  भींगते भींगते उस बरगद के नीचे आकर ठहर गयी. रात घुप्प अँधेरी थी, और रौशनी के  सारे रास्ते घरों में बंद थे. लोगों ने घरों से ही कयास लगाने शुरू किये. वे कयास क्या थे यह मुद्दा नहीं है.
सुबह हुई, वो लड़का बाहर निकला , बगैर उस लड़की के जो रात में कुछ देर बरगद के नीचे खड़े रहने के बाद उस पाइप रुपी सरकारी आवास में आ गयी थी. कयास फिर से लगाये गये.
खैर साल भर बाद माहौल बहुत कुछ बदला, सरकार ने वहां भूमिगत सीवर बनवाने के लिए पड़े पाइप तो ना हटवाये, पर इलाके की जमीं खाली करवाना शुरू कर दिया. और वो लड़का, सुनते हैं दूसरी आजादी के किसी नक्सली गुट से जुड़ गया.
साल भर बाद वही दिन आया, जिस दिन साल भर पहले लोगों के घर तरकारी से ज्यादा बातें मसालेदार हुई थीं, जब लोगों ने उस शरणार्थी जैसी लड़की को बरगद के नीचे और फिर पाइप के अन्दर जाते देखा था. अब वहां सेना के जवान वगैरह गश्त करते थे सो लोग बाहर कम ही निकलते थे. पर वह बड़ा सा पाइप और बरगद वहीं का वहीं था, मानो सरकार की खामियों के छेद को दिखाता हुआ, या बरगद की भांति जड़ हो गयी योजनाओं को दर्शाता हुआ.
खैर साल भर बाद उसी दिन सुबह वह लड़की उसी बरगद के पास दिखाई दी, और पांच मिनट पाइप के पास कड़ी होने के बाद चली गयी. मोहल्ले वालों की चाय गले में अटक गयी, लेकिन शाम को तो तमाम लोगों के पेट गुड़गुड़ाने लगे, जब वह लड़का भी उसी पाइप के पास आया और फिर कुछ करने के बाद चला गया.
ये कहानी एक-दो सालों की नहीं है, हर साल यह क्रम चलता रहा, उस लड़की के आने का , और फिर कभी उसी दिन शाम या अगले दो तीन दिनों में उस लड़के के आने का. पूरी बस्ती भर का कोई व्यक्ति कभी देखने नहीं गया कि उस पाइप में होता क्या था.
धीरे धीरे बूढा बरगद भी जमीं से मिलने के लिए बेताब होता जा रहा था. परिवर्तन और भी हुए थे, जैसे वो लड़की अब साड़ी में आती हुई दिखाई दी, और वो लड़का भी देसी तमंचे की जगह एके
47 के साथ फौजी जैसे लिबास में.
एक बरस जब वह लड़की जो अब चालीस साल की महिला हो चुकी थी, आई तो कुछ पहले से घात लगाये पुलिस वाले उसे पकड़ ले गये. कुछ पूछताछ , बातचीत हुई होगी, पता नहीं. वह महिला अगले दिन आई और फिर से पाइप के पास पहुंची और चली गयी. लोग कहते हैं कि उस बरस वो लड़का जो अब खासा जवान हो चुका था वो दिखाई नहीं दिया था. अगले बरस उस महिला का आना और उस पाइप के अन्दर जाकर लौटने के बाद परेशान होकर लौटना भी इसकी पुष्टि करते थे.
अब उसका हर साल आना तो लगा रहा और लोगों का कहानियां बनाना भी पर, उस नक्सली का आना जो रुका, तो फिर शुरू ही ना हो सका.
तीस बरस बीत गये. वो अधेड़ और फिर बूढी हो चुकी औरत पिछले दो साल से आई नहीं थी.
एक घर में एक आदमी अपनी बीवी को बता रहा था, ‘जानती हो बाबा कह गये थे, कि इसी पाइप में रहन वाले आदमी से उस बरगद वाली लड़की का कुछ चक्कर रहा होई, हर साल आना जाना, जाना आना. पता नहीं इस साल उ बुढ़िया कहाँ मर गयी, लगभग साठ बरस रहे होंगे जब ओ दोनों एही दिन एही पाइप में मिले थे., अब भगवान जाने’
यूँ भगवान् को जानने को कुछ था नहीं, क्यों कि कहानी तो सब मोहल्ले वाले ही बना चुके थे.
लेकिन बूढा बरगद अब बेचैन हो चला था ये सब सुनते सुनते. उस शाम अचानक भर्भाराहट की आवाज आई, और बरगद भूमिशायी हो गया. पर केवल इतना ही नहीं हुआ, उसकी एक मोती शाख उस बड़े पुरातात्विक हो चुके पाइप को तोड़ गयी....
एक बच्चा रोकते रोकते उसके अन्दर के टूटे हुए हिस्से तक चला गया, और बीस-पचीस धागे उठा लाया.
वह अपनी माँ को बोले जा रहा था, ‘ माँ ये तो हम छहों भाइयों के हाथ पर बांध जाएगी न , चलो मीठी को राखी लेने कहीं जाना ना होगा’
लोग अपनी संभावनाओं पर तुषारापात होते देख वहां से हताश लौट आये. एक कहानी ख़त्म हो चुकी थी, पर टूटा बरगद अबकी मुस्करा रहा था.