Sunday, 20 November 2011

है बात पुरानी खास नही,,,,, है कब की ये भी याद नही..................................


अँधेरी रात से उजियाली बात कहो,
राख बची रह गयी सड़क पर फुलझड़ी की,
उस राख की बेरुखी पर कोई सवाल नही,
मगर किसी के अंधे भविष्य पर अब भी मौन ना रहो,
रात भर उडती रहेगी शराब उसके बाप की,
जिसने गँवा दिया अपने हाथ की अँगुलियों का-
अगला हिस्सा,
किसी पटाखे का पेट बनाने में,
कुछ और नही,
उस अबोध का दर्द नही,
बस कभी आइसक्रीम ना पकड़ सकेंगी,
जो अंगुलियां,
उनकी मज़बूरी बेआस सहो,
कुछ कहीं घी दिया जलता तो बात बनती,
वो लौट आता इसी बहाने से वनिता सजती,
मगर है कहीं गरीबों का पोकर अड्डा,
जहाँ से लौटना तो है,
मगर तमाम कुछ गंवाकर,
सो घी तो नही मगर जल रहा है तेल का दिया,
मद्धिम रौशनी है जिंदगी की,
काला पड़ गया अलमारी का किनारा,
बुझते दीपक से उज्ज्वल नहीं,
जलते भविष्य की ना बाट जहो,
इस दीवाली इतने ही उजियाले की बात करो.....................

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