वो अकेला ही देखा जाता था
हमेशा और बरगद से ठीक पहले पड़ा एक बड़ा सा पाइप उसका ठिकाना था. न किसी और को उसकी
फ़िक्र थी न उसे किसी को अपने बारे में बताने की चाहत, सो मोहल्ले भर का कर्फ्यू
केवल उसके नाम पर लगता था.
सुना जाता है कि एक रात एक लड़की बारिश में
भींगते भींगते उस बरगद के नीचे आकर ठहर गयी. रात घुप्प अँधेरी थी, और रौशनी
के सारे रास्ते घरों में बंद थे. लोगों ने
घरों से ही कयास लगाने शुरू किये. वे कयास क्या थे यह मुद्दा नहीं है.
सुबह हुई, वो लड़का बाहर निकला , बगैर उस लड़की के जो रात में कुछ देर बरगद के नीचे खड़े
रहने के बाद उस पाइप रुपी सरकारी आवास में आ गयी थी. कयास फिर से लगाये गये.
खैर साल भर बाद माहौल बहुत कुछ बदला, सरकार ने वहां भूमिगत सीवर बनवाने के लिए पड़े
पाइप तो ना हटवाये, पर इलाके की जमीं खाली करवाना शुरू कर दिया. और वो लड़का, सुनते
हैं दूसरी आजादी के किसी नक्सली गुट से जुड़ गया.
साल भर बाद वही दिन आया, जिस दिन साल भर पहले लोगों के घर तरकारी से ज्यादा बातें
मसालेदार हुई थीं, जब लोगों ने उस शरणार्थी जैसी लड़की को बरगद के नीचे और फिर पाइप
के अन्दर जाते देखा था. अब वहां सेना के जवान वगैरह गश्त करते थे सो लोग बाहर कम
ही निकलते थे. पर वह बड़ा सा पाइप और बरगद वहीं का वहीं था, मानो सरकार की खामियों
के छेद को दिखाता हुआ, या बरगद की भांति जड़ हो गयी योजनाओं को दर्शाता हुआ.
खैर साल भर बाद उसी दिन सुबह वह लड़की उसी बरगद के पास दिखाई दी, और पांच मिनट पाइप
के पास कड़ी होने के बाद चली गयी. मोहल्ले वालों की चाय गले में अटक गयी, लेकिन शाम
को तो तमाम लोगों के पेट गुड़गुड़ाने लगे, जब वह लड़का भी उसी पाइप के पास आया और फिर
कुछ करने के बाद चला गया.
ये कहानी एक-दो सालों की नहीं है, हर साल यह क्रम चलता रहा, उस लड़की के आने का ,
और फिर कभी उसी दिन शाम या अगले दो तीन दिनों में उस लड़के के आने का. पूरी बस्ती
भर का कोई व्यक्ति कभी देखने नहीं गया कि उस पाइप में होता क्या था.
धीरे धीरे बूढा बरगद भी जमीं से मिलने के लिए बेताब होता जा रहा था. परिवर्तन और
भी हुए थे, जैसे वो लड़की अब साड़ी में आती हुई दिखाई दी, और वो लड़का भी देसी तमंचे
की जगह एके47 के साथ फौजी जैसे लिबास में.
एक बरस जब वह लड़की जो अब चालीस साल की महिला हो चुकी थी, आई तो कुछ पहले से घात
लगाये पुलिस वाले उसे पकड़ ले गये. कुछ पूछताछ , बातचीत हुई होगी, पता नहीं. वह
महिला अगले दिन आई और फिर से पाइप के पास पहुंची और चली गयी. लोग कहते हैं कि उस
बरस वो लड़का जो अब खासा जवान हो चुका था वो दिखाई नहीं दिया था. अगले बरस उस महिला
का आना और उस पाइप के अन्दर जाकर लौटने के बाद परेशान होकर लौटना भी इसकी पुष्टि
करते थे.
अब उसका हर साल आना तो लगा रहा और लोगों का कहानियां बनाना भी पर, उस नक्सली का
आना जो रुका, तो फिर शुरू ही ना हो सका.
तीस बरस बीत गये. वो अधेड़ और फिर बूढी हो चुकी औरत पिछले दो साल से आई नहीं थी.
एक घर में एक आदमी अपनी बीवी को बता रहा था, ‘जानती हो बाबा कह गये थे, कि इसी
पाइप में रहन वाले आदमी से उस बरगद वाली लड़की का कुछ चक्कर रहा होई, हर साल आना
जाना, जाना आना. पता नहीं इस साल उ बुढ़िया कहाँ मर गयी, लगभग साठ बरस रहे होंगे जब
ओ दोनों एही दिन एही पाइप में मिले थे., अब भगवान जाने’
यूँ भगवान् को जानने को कुछ था नहीं, क्यों कि कहानी तो सब मोहल्ले वाले ही बना
चुके थे.
लेकिन बूढा बरगद अब बेचैन हो चला था ये सब सुनते सुनते. उस शाम अचानक भर्भाराहट की
आवाज आई, और बरगद भूमिशायी हो गया. पर केवल इतना ही नहीं हुआ, उसकी एक मोती शाख उस
बड़े पुरातात्विक हो चुके पाइप को तोड़ गयी....
एक बच्चा रोकते रोकते उसके अन्दर के टूटे हुए हिस्से तक चला गया, और बीस-पचीस धागे
उठा लाया.
वह अपनी माँ को बोले जा रहा था, ‘ माँ ये तो हम छहों भाइयों के हाथ पर बांध जाएगी
न , चलो मीठी को राखी लेने कहीं जाना ना होगा’
लोग अपनी संभावनाओं पर तुषारापात होते देख वहां से हताश लौट आये. एक कहानी ख़त्म हो
चुकी थी, पर टूटा बरगद अबकी मुस्करा रहा था.