आँधियों पूरी ताकत लगा देना,
ताकि फिर ना कहना पड़े तुम्हे,
कि तुम्हारे दिल में उतरा था,
कोई ठंडा झोंका हवा का,
क्योंकि मैं 'दिया' ,
कतई मोहताज नहीं,
कतई इच्छुक नहीं,
तुम्हारी दया का,
तुम्हारी भिक्षा का,
नहीं नहीं,
मत सोचना कि तुम्हारा अस्तित्व,
देता है ऑक्सीजन मेरे जलने को,
वो तो अधिकार है मेरा,
और मैं उसे पाता रहूँगा,
बस,
बस, जलना तुम्हारे 'साथ पर' सही,
पर तुम्हारे 'साथ में' नहीं,
यह प्रतिरोध की लौ है,
खाक से बने बारूद की,
अनगिनत हड्डियों से बने कोयले की लौ,
मेरे बहते लहू से बने तेल की लौ,
मेरी नसों से बनी बाती की लौ,
यह तुम्हारी किसी भीख से बुझेगी ?
तुम्हारे अट्टहास से मेरी चीख दबेगी ?
नहीं नहीं,
मत सोचना कि तुम्हारा वेग,
तुम्हारा आकार,
तुम्हारी भयावहता,
छीन सकती है ,
मेरा जलने का धर्म,
मेरी जलने की जाति,
वो तो कभी छू भी नहीं पायेगी,
मेरी राख का राज्य,
गर मैं पूरा जल भी गया तो,
नहीं नहीं,
मुझे नहीं सोचना ,
कि मिले मुझे कोई उत्तराधिकारी,
जो मेरे बाद भी तुम्हारे प्रतिरोध में,
प्रभात करता रहे किसी काली रात में,
मेरी संपत्ति मैं खुद हूँ,
मेरी जमानत भी,
मेरी ज़मीन भी,
मेरी हुकूमत भी,
इसीलिए,
हड्डियों के राख होते चूरे तक,
आँखों की जलती हुई पलकों तक,
खून के आखिरी अंश तक,
बस जलने की परम्परा वाले वंश तक,
मैं जलूँगा,
मैं जलूँगा,
आँधियों पूरी ताकत लगा देना.
---© प्रभात
ताकि फिर ना कहना पड़े तुम्हे,
कि तुम्हारे दिल में उतरा था,
कोई ठंडा झोंका हवा का,
क्योंकि मैं 'दिया' ,
कतई मोहताज नहीं,
कतई इच्छुक नहीं,
तुम्हारी दया का,
तुम्हारी भिक्षा का,
नहीं नहीं,
मत सोचना कि तुम्हारा अस्तित्व,
देता है ऑक्सीजन मेरे जलने को,
वो तो अधिकार है मेरा,
और मैं उसे पाता रहूँगा,
बस,
बस, जलना तुम्हारे 'साथ पर' सही,
पर तुम्हारे 'साथ में' नहीं,
यह प्रतिरोध की लौ है,
खाक से बने बारूद की,
अनगिनत हड्डियों से बने कोयले की लौ,
मेरे बहते लहू से बने तेल की लौ,
मेरी नसों से बनी बाती की लौ,
यह तुम्हारी किसी भीख से बुझेगी ?
तुम्हारे अट्टहास से मेरी चीख दबेगी ?
नहीं नहीं,
मत सोचना कि तुम्हारा वेग,
तुम्हारा आकार,
तुम्हारी भयावहता,
छीन सकती है ,
मेरा जलने का धर्म,
मेरी जलने की जाति,
वो तो कभी छू भी नहीं पायेगी,
मेरी राख का राज्य,
गर मैं पूरा जल भी गया तो,
नहीं नहीं,
मुझे नहीं सोचना ,
कि मिले मुझे कोई उत्तराधिकारी,
जो मेरे बाद भी तुम्हारे प्रतिरोध में,
प्रभात करता रहे किसी काली रात में,
मेरी संपत्ति मैं खुद हूँ,
मेरी जमानत भी,
मेरी ज़मीन भी,
मेरी हुकूमत भी,
इसीलिए,
हड्डियों के राख होते चूरे तक,
आँखों की जलती हुई पलकों तक,
खून के आखिरी अंश तक,
बस जलने की परम्परा वाले वंश तक,
मैं जलूँगा,
मैं जलूँगा,
आँधियों पूरी ताकत लगा देना.
---© प्रभात
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