Saturday, 8 October 2016

पुनर्जन्म

दहाड़कर मरने कौन जाता है,
जिस अनुभव का मूक रहना जरूरी,
शोर कम होना चाहिए जब आप
जलने के आखिरी पड़ाव पर हों,
जिंदगी के इंतज़ार को,
मौत पर ख़त्म होना होता है !

पर कभी कभी,
ऐसा नहीं होता,
कोशिश होती है, समझो जैसे रस्साकशी,
एक दीमक और लकड़ी के बीच जैसी,
जब पाउडर हो चुकी सतह के अंदर,
मौजूद होती है कोई गाँठ,
जो न कटती है, न निकलती है !
कभी कभी लकड़ी की भी विजय होती है !

कोशिश होती है, समझो जैसे पिघलाने की,
एक लकड़ी का बना जत्था,
पिघला देता है लोहे को भी,
कभी कभी, 1000 चोटों के बाद
1001वां प्रहार, चूर चूर कर देता है,
शक्ति, अभिमान, और निराशा,
निराशा, !
कब चूर होती है?
जब पसीने की एक बूंद,
बींध देती है बंज़र ज़मीं को,
और भिंगो देती है ईश्वर का आँचल !

कोशिश होती है समझो जलने की,
एक दीपक, जिसे बुझने की कोशिशें जारी हों,
हवा, बाती सब खिलाफ हो जाते हैं,
यकीन मानिए, आप मैं नहीं,
कभी कभी एक दिए का भी साँस लेना मुश्किल होता है !
वातावरण उसका भी दम घोंटता है,
और जिंदगी मौत हो जाता है,
जलने बुझने का द्वंद्व !
पर कभी कभी,
कपास का एक कतरा उलझ जाता है,
आंधी तूफान से !
दिए का कमजोर हिस्सा शक्तिशाली हो जाता है !
वो कतरा
जिसे शायद मंजूर न रहा होगा,
किसी सूत का हिस्सा बनना,
उसका अल्हड़पन, मशीन या कि करघे को भाया नहीं होगा,
वह कतरा ही टिक जाता है,
खूंटा गाढ़ कर जलता है,
और बुझता नहीं !

कोशिश होती है समझो उगने की,
जब सीमेंट कंक्रीट में मेरे जीने की जगह,
वजह
छीन ली जाती है,
और मैं हाथ बांधे , बांस बल्लियों का बंधना,
ईमारत का बनना,
और खुद का बिखरना देखता हूँ,
लोग रहना शुरू कर देंगे मेरे छलनी सीने पर
जल्दी ही !

पर कभी कभी ,
मेरे अंदर अंकुरण होता है,
आत्मनकुरण
जो फोड़ देता है रोम रोम,
और बाहर निकलता है तोड़ते हुए,
कंक्रीट को भी,
ये अंकुरण मैदान में, मिटटी में नहीं होता ,
ये तभी होता है
जब मुझे दबा दिया जाता है,
जब मैं बुझने वाला होता हूँ,
जब मैं मिटने वाला होता हूँ,
जब मैं गिरने वाला होता हूँ,

जिंदगी और मौत के इसी संकरे फासले के बीच
मेरा पुनर्जन्म होता है !

Thursday, 5 May 2016

नक्शा, नक्शेबाज़ी और लकीरों का खेल

जम्मू-कश्मीर की बारीक रेखाएं : सही कौन 



तो खबर है कि यूँ ही मुल्क के नक़्शे को आप गलत नहीं दिखा सकते, कुछ करोड़ का जुरमाना, सात साल की सजा का एक प्रावधान सुनिश्चित किया गया है ! यद्यपि तब, जब कि मैं ये लिख रहा हूँ शायद मेरा लिखा इस बात के दायरे में आ जाये, सो जो लिखा है बड़ी सावधानीपूर्वक लिखा है

आप जब ये अधिसूचित करते हैं कि भारत का नक्शा गलत दिखाने पर सजा होगी तो कुछ चीजें, अपिरिभाषित और अस्पष्ट रह जाती हैं | मसलन, सजा कैसे होगी ? गलत नक्शा भूल से दिखाने पर भी ? अब जैसे कि ऊपर एक चित्र है जिसमे मैंने दो नक़्शे दर्शाए हैं, पहला गूगल के ब्रिटिश संस्करण का और दूसरा भारतीय संस्करण का | मुद्दे की बात यह है कि सेंट्रल कराकोरम नेशनल पार्क जैसी जगह जो कि वैश्विक स्तर पर पाकिस्तानी बताई जाती है, को हमने अपने सर्वे ऑफ़ इंडिया में जगह नहीं दी है अपितु समूचे कश्मीर के नक़्शे को ही प्रतिबंधित बताया है | विदेश नीति का कोई तो ऐसा हिस्सा है जिसकी मुझे समझ नहीं, क्योंकि हमारा विदेश मंत्रालय भारत के नक्शे को वैसा ही दिखाता है जैसा कि गूगल, अर्थात, आजाद कश्मीर (?) (पश्चिम में), नेशनल कराकोरम पार्क (ऊपर का हिस्सा) और अक्साई चिन (पूर्व का हिस्सा), ये सारे विवादित होकर भी भारत के हिस्से माने गये हैं |

अंग्रेजो से एक चीज हमने बहुत अच्छी सीखी, विवादों को लम्बे समय तक जारी रखने की | क्या है न कि हम भारतीय इतने प्रतिभावान हैं कि बहुत सारा काम भी कम समय में कर लेते हैं, तो बाकी समय लड़ाई, बहस, मुद्दे में बर्बाद होना ही चाहिए , चाहे वह अयोध्या में मस्जिद-मंदिर का मुद्दा हो, दिल्ली का आधे-पूरे राज्य का, और तमाम नदियों में पानी के बंटवारे का | असल में जो भी हमे मिला, शायद थोडा जल्दी मिल गया | कुछ एक शताब्दी की गुलामी और होती तो इस जमीन का मोल समझा देती जो कि आज हम समझते नहीं | खैर मुद्दे की बात, तो, जो हमने सीखा अंग्रेजों से वो ये, कि मुद्दा कैसा भी हो जिन्दा रहना चाहिए, वजह यही थी शायद कि एक बार 1965 में हम काफी सारे कश्मीर को हद में ले चुके थे, पर दानवीर जो ठहरे, दान करके चले आये | और माशाल्लाह, तब से सरकारें भी सिर्फ दिल्ली की सर्दी गर्मी झेलती रहीं, कश्मीर और कन्याकुमारी का क्या हाल था किसी ने जाना तक नहीं | कारगिल युद्ध (जिसमे हमने ब्रिटिश नक़्शे में दिखाए गये, अपने खुद के हिस्से को ही वापस लिया, आज़ाद कश्मीर या गिलगित या अक्साई चिन को नहीं) के बाद अचानक इन एक दो सालों में जब कश्मीर मांगे आज़ादी की बहस शुरू हुई, और अचानक सरकार को लगा कि देश पूरा दिखने के लिए कुछ प्रावधान, कुछ कानून या कुछ आदेश दे दिए जाएँ |

दे दीजिये हुज़ूर जरूर दे दीजिये, जनता द्वारा चुनी गयी सरकार का हुक्म सर आँखों पर | पर हाँ कभी जो आपके दिल में कुछ और आये तो, इतना जरूर कीजियेगा कि कश्मीर और अरुणाचल की अवाम को महफूज़ होने का और अपनेपन का एहसास करा दीजियेगा, क्या पता है, जितना आज है (अपने नहीं, दूसरो के नक़्शे में ही सही, अपने में तो दूसरो से दोगुना कश्मीर है) हम उतने को ही बचा के रख पायें | बाकी गिलगित और अक्साई चिन के लिए पडोसी की गलती और संयुक्त राष्ट्र संघ को समझाने का इन्तजार करिए, क्यूँ कि या तो आपने सामने की लड़ाई (और उसमे भी जीत कर फिर से वापस ना कर आयें तो) या वैश्विक समुदाय को विश्वस्त करने पर ही उतना कश्मीर और अरुणाचल आपका हो सकेगा जितना विदेश मंत्रालय के अनुसार है, या कि जितने प्रकाशन के लिए आपने सजा का प्रावधान किया है |

आपकी जमीन के बंदरबांट से सैकड़ों मील आगे निकला हुआ, भारत का नागरिक !