Friday, 9 January 2015

बड़े दिनों बाद --------



एक तेरे दर का सहारा और घर जाना नहीं,
तू अगर ठुकरा गया गया तो फिर संभल पाना नहीं,
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आँख, आंसू, नींद, सपने सब तेरे पैरों तले,
तू अगर अपना नहीं, तो कोई अपनाना नहीं,
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ठोंककर ख़म जिंदगी को दे चुनौती चल रहे,
आ तुझे मैं जी रहा हूँ, तू रहम खाना नहीं,
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तूने अपने हुक्म से करवा लिए सब फैसले,
मेरे हिस्से में हुनर-ए-जिरह का ताना नहीं,
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बेहिसाबी से जिया है और किया है अब तलक,
तू न गर समझे तो अब फिर और समझाना नहीं,
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नाप ले गर शक शुब्हा हो कूव्वत-ए-निबहा मेरी,
ये मेरी खामी है इसका कोई पैमाना नहीं,
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ना मुझे दे ख्व़ाब वे जिनमे मुनासिब 'मैं' से 'हम',
तू मेरा सब कुछ मगर तेरा मैं इक आना नहीं......