Friday, 9 May 2014

मेरे जैसे !!!



बेसहारा लोग,

मेरे जैसे,

ढूंढते फिरते हैं,

एक कन्धा,

या एक हथेली,

इसलिए,

कि रिश्ते अधूरे न रहें,

कम न पड़ें,

कि जीने की कोई वजह ना मिले,

मेरे जैसे,

ढूंढते फिरते हैं,

एक साथ,

एक राह,

कि कोई चलने को राजी भर हो,

बाकी, उसके कदम हम खुद हो जायेंगे,

मेरे जैसे,

ढूढ़ते फिरते हैं,

एक दिया,

बिना तेल ही,

राजी हो जलने को,

हवा के हर झोंके में,

तेल हम खुद हो जायेंगे,

मेरे जैसे,

ढूंढते हैं,

एक नाव छोटी सी,

जो राजी हो खेलने को,

किसी शाम लहरों पर,

नदी हम खुद हो जायेंगे,

मेरे जैसे,

ढूंढते हैं,

खिड़कियाँ,

जो ऊंचाई पर हों इतनी कि,

ठंडी हवा आ जाये,

सहला जाए,

कोई और ना देखे,

परदे हम खुद हो जायेंगे,

मेरे जैसे,

ढूंढते हैं,

काजल,

तुम्हारी आँखों में,

बस बस कोर के ठीक नीचे,

हाँ हाँ थोडा सा फैला हुआ,

बाहरी किनारों पर,

खतरे पर, आंसू पर,

पोंछ हम खुद जायेंगे,

मेरे जैसे,

तुम्हारी जिन्दगी की रफ कॉपी के पन्ने,

तुम लिखो, अच्छा लिखो,

सुन्दर नए कागजों पर,

अपनी इबारतें,

कूड़े में हम खुद जायेंगे,

मेरे जैसे,

होते है तीन लकड़ियाँ नहीं,

चार कंधे नहीं,

दो डलिया मिटटी नहीं,

गिरजे की मोमबत्ती नहीं,

पर वो सब जो तुम्हे सुकून दे सके,

अपने आखिरी करम तक,

तुम्हारे आखिरी रहम तक,

ऑक्सीजन की तरह,

बस जरूरत बनी रहे,

मयखाने की तरह,

बस प्यास बनी रहे,

हम तुम्हारी जरूरत और प्यास,

बनकर इतरा तो सकते हैं,

एक रोज,

छलक हम खुद जायेंगे,

बिखर हम खुद जायेंगे,

मेरे जैसे....