Saturday, 16 June 2012

घर पर रहकर राग-रागिनियों के फेर में उलझा हूँ,
राग भैरव को खुद से थोडा बहुत समझने के बाद एक रचना को उसमे निबद्ध किया,

रचना क्या साब हमारे यहाँ की भाषा में एक गीत है,
ऐसे गीत पहले भी कई बार लिखे गए, किन्तु इस बार ये थोडा सा अलग है,
ये गीत एक माँ-बेटी का संवाद है....
अन्तःवस्तु बिछोह का रस देती है.....

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बेटी-------------------------
अम्मा मेरी, काहे ना मों पै नेह,
जैसी कछु बिटिया तिहारी,
मेरो सावन बीत गयो परदेस,
ऐसी कौन गलती हमारी|

बचपन से तुम एक आस हमारी,
कौनहू विपद पडी हो भारी,
जबै ननिहाल गयी तुम दोय दिन,
रोवत कटि गयी रात हमारी,

भूलो मोहि अब लौं तुम्हारो ना गेह,
जैसी कछु बिटिया तिहारी,
मेरो सावन..............................

मोहि सुहावनो लागै सजन एक,
तुमसे विलग हों चाहूँ ना छिन एक,
बाबा को क्रोध अनल सो बरसो,
त्यागो मोहे कठोर ए प्रन एक,

बाबा मेरे तुम बिन सुनो सो देस,
जैसी कछु बिटिया तुम्हारी,
मेरो सावन.............................

बीती जो होली बिना घर आवे,
पिछली दिवाली की याद दिलावे,
भैया है छोटो, पठेहो ना तुम बाबा,
राखी बंधू कैसे, जिय घबराबे,

अब मैं जियन की आस करूँ कैसे,
तोडो जो नाता ओ कौन बँधावे
जब मेरी आस दिखें टूक बिखरे,
अँखियन असुवन की धार लगावे,

मैया मेरी, साँसन को पढ़ियो संदेस,
जैसी कछु बिटिया तिहारी.......

मेरो सावन............................
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माँ,------------------------
मोहे सुहाग ने सौं दै दीनी,
बाबा ने तोसे तोरी मैया छीनी,
याद हमे हू हैं बातें, तिहारी ,
जैसी कछु तुम अंस हमारी,

जानो मेरी, मजबूरी को बेस, नाही कछु गलती तिहारी,
तेरो सावन...................